Thursday, March 17, 2011

Articles of/on/by Lenin & Shruti: Branded witch, these women are scarred forever

Articles of/on/by Lenin & Shruti: Branded witch, these women are scarred forever

यही सोचती कि क्या मैं सचमुच डायन हूँ

http://www.sarokar.net/2011/03/यही-सोचती-कि-क्या-मैं-सचमु/

इस बार पूर्वी उत्तरप्रदेश से पेश है लेनिन रघुवंशी द्वारा भेजी गयी जोगसरी की कहानी उन्‍हीं की जुबानी



                              सावित्री बाई फूले के जन्‍मदिन पर जोगसरी को सम्‍मानित किया गया
मेरा नाम जगेश्‍वरी देवी, उम्र 32 वर्ष है। मेरे पति रमाशंकर हैं। मेरे चार लड़के तेज बली 11 वर्ष, राम बली 6 वर्ष, श्याम नारायण 4 वर्ष और राजनारायण एक वर्ष का है। मैं ग्राम-करहिया, पोस्ट-म्योरपुर, थाना-दुद्धी, ब्लाक-म्योरपुर तहसील-दुद्धी, जिला-सोनभद्र की रहने वाली हूँ। मेरी शादी जुबैदा के (आसनडीह) में हुई थी। चार वर्षों तक मैं ससुराल में रही। बाद में मायके करहिया में अपने बाबूजी की देखभाल करने आ गयी। मेरी बड़ी तीन बहनें अपने ससुराल में ही रहती हैं। खेती के लिए आठ बीघा जमीन है जिस पर मैं और मेरे पति खेती गृहस्थी करके अपना जीवन बीता रहे हैं।



मेरी चचेरी बहन दुल्लर और बहनोई सहदेव जो मेरे घर से तीन घर की दूरी पर रहते हैं। इनको पाँच लड़के और दो लड़कियाँ थी। कुछ वर्ष पहले बीमारी के कारण इनके दो लड़के मर गये थे। अभी सानिया और एक छोटा बच्चा जो काफी समय से बीमार चल रहा था। मंगलवार की रात (31.07.2010) को सानिया मर गयी। यह खबर सुनते ही मैं भागी दौड़ी उनके घर गयी। वहाँ पर पहले से ही चार औरते और ओझा खेलावन झाड़ फुक कर रहे थे। मैं अन्दर बैठी थी। मेरे बहनोई अपने घर के दरवाजे पर लाठी, डंडा और टंगारी लेकर पैर फैलाकर बैठ गये।


बार-बार यही बात मुझे देखकर कहते ‘डायन’ मेरे लड़के को खा गयी है। मैं तुम्हे नहीं छोड़ुगा। देखे बाहर कैसे निकलती है। यह बात सुनकर मुझे डर लगता था, सेाचती यह क्या कह रहे हैं किसी तरह रात गुजरी सुबह हुयी। मौका मिलते सहदेव जैसे ही दरवाजे से हटा मैं अपने घर जल्दी से चली आयी, अगर वह आ गया तो फिर मुझे नहीं जाने देगा। घर आकर झाड़ू बर्तन करने लगी। कुछ दिन बीता शायद उस समय 12.00 बज रहा था। आस-पास के लोग लाश दफनाने के लिए आने लगे। मैं अभी घर का काम कर ही रही थी। तभी सहदेव ने मुझे बुलाया ‘यहाँ आओ’ मैं रात की बात से डरी थी लेकिन मरनी होने के कारण वहाँ गयी। गाँव के सभी लोग बैठे थे। करीब साठ लोग थे। ओझा अपना झाड़ फुक कर रहा था। मैं भी गाँव के लोगों के बीच में जाकर बैठ गयी। तो सहदेव ने मुझे आगे आने को कहा मैं जा रही थी सोच रही थी कि सभी बैठे हैं वह सिर्फ मुझे ही क्यों बुला रहा है।


जब मैं उसके करीब पहुँची मैं डर रही थी ‘डरते हुए मैंने जीजा से पुछा क्या बात है तो वह मेरे हाथ में मरी हुई सानिया को देकर कहा ‘डायन’ इसे जीला नहीं तो मैं तुम्हे नहीं छोड़ूगा। ओझा खेलावन मेरे चारो बगल घूमता और झाड़-फूंक करता। बच्चे को गोद में लेकर मैं डरी सहमी हुई बैठी थी। काफी झाड़ फूक करने के बाद सहदेव ने मुझे अपनी जुबान निकालने के लिए कहा। यह सुनते ही मैं घबरा गयी। यह अब क्या करेगा मेरे साथ सारे गाँव के लोग चुपचाप बैठकर तमाशा देख रहे थे। तभी सहदेव ने मुझे कहा अपनी जुबान निकालो इस पर चिया चरायेंगे (जुबान के ऊपर चावल का दाना रखकर मुर्गी से चराना)। मेरा दिल अन्दर से धक-धक कर रहा था जैसे ही जुबान बाहर निकाली सहदेव ने चालाकी से अपनी हाथ में ब्लेड लिया था। मैंने उसे नहीं देखा था। मेरे जीभ पर वार किया जीभ कट गयी।


मैं दर्द से तड़पने लगी। रोती बिलखती रही सोचा ये क्या हुआ आस पास बैठे किसी ने मुझे सहारा नहीं दिया न ही सहदेव को ऐसा करने से मना किया। मुँह से खून निकलने लगा। देखते ही देखते जमीन पर ढेर सारा खुन फैल गया। मेरे पति भी डर के वजह से नहीं बोले। सारा कपड़ा खून से लथपथ हो गया था।


यही बात दिमाग में आती कि यह क्या हुआ। यही सोचती क्या मैं सचमूच डायन हूँ। मेरी आँखों के सामने ओझा और सहदेव ने मेरी कटी हुई जुबान को छोटे-छोटे टुकड़ों में कर, उसमें चावल का दाना मिलाकर मुर्गी से चरवाया। फिर सभी लोग लाश लेकर दफनाने चले गये। उनके पीछे-पीछे मेरे पति भी गये।


वहाँ पर उन्होंने लाश को दफनाया और उसके बाद उसकी कब्र पर मुर्गी छोड़कर चले आये। वह मुझे उसी हाल में छोड़ कर चले गये। आस-पड़ोस की औरतें भी मुझे डायन समझकर अकेले तड़पते हुए छोड़कर चली गयी। मैं रात भर बिना दवा के रोती बिलखती रही। सुबह से कुछ खाना भी नहीं था। जुबान कटने के बाद तो मुझसे पानी भी नहीं पीया जा रहा था। रात भर मैं कलपती रही। किसी ने मेरी मदद नहीं की। छोटे-छोटे बच्चों को किसके भरोसे मैं छोड़कर अस्पताल जाती। आज भी इन बातों को याद करती हूँ तो उन लोगों पर गुस्सा आता है। सोचती हूँ क्या सचमुच मैं ‘डायन’ हूँ।
                                                  डायन बताकर सरेआम ये दुर्व्‍यवहार

सुबह हुई। चारो तरफ बात फैल गयी। मैं म्योरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर अपनी दवा लेने गयी तो वहाँ के डाक्टर ने मेरे पति से पूछा कि क्या हुआ। फिर पति ने उन्हें सारी बात बतायी। तभी वहाँ पर दुद्धी थाना के दरोगा और सिपाही एक जीप से आये। मुझे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। बार-बार दरोगा मुझसे पुछते कि क्या हुआ था। मेरे मुँह से आवाज नहीं निकलती। बोलने की कोशिश करती तो मेरा घाव दर्द करता। सभी ने मेरे पति से बयान लिया। चार दिन तक मेरा इलाज हुआ। मेरे बच्चे घर पर अकेले थे। पति मेरी देखभाल करते। बस्ती से कोई भी मुझसे मिलने नहीं आया। मुझे हर वक्त अपने बच्चों की चिंता लगी रहती थी। सोचती कहीं उन लोगों के साथ वे लोग कुछ उल्टा-सीधा न करें।




मैं अस्पताल से घर वापस आयी तो पता चला सहदेव का छोटा लड़का जो बीमार था वह भी मर गया। यह सुनते ही मेरा जी फिर से धक-धक करने लगा। मेरे हाथ पैर काँपने लगे। बार-बार यही सोचकर मन शान्त करती कि सहदेव और ओझा तो पुलिस कि गिरफ्त में है।


लेकिन अभी भी डर लगता है कि जब वे छूटकर आयेंगे तब उनका व्यवहार हमारे प्रति कैसा होगा। मेरे पति बहुत ही सीधे हैं। वे लोग मुझे ‘डायन’ कहकर मेरी जमीन हड़पना चाहते हैं। बस्ती में पहले भी एक परिवार के लोग झगड़ा करकर बेघर कर चुके हैं। मेरी जमीन, मेरा घर हड़प कर मुझे बेघर करना चाहते हैं ‘डायन’ कहकर मेरी जीभ काटकर मुझे यहाँ से भगाना चाहते हैं।

यही चिन्ता दिन रात खाये जा रही है। रात को नीद नहीं आती। मन हमेशा घबराता है। मुझे सही ढंग से खाया नहीं जाता। गिलास से सीधे पानी नहीं पी पाती। आवाज भी लड़खड़ाती है। जब बोलती हूँ तो जुबान लड़ती है। मैं चाहती हूँ जिन लोगों ने मेरे साथ ऐसा किया है मुझें ‘डायन’ बनाया है उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले। अभी भी सहदेव के डर से बस्ती के लोग मेरे पास नहीं आते। बाहर का कोई भी मिलने आता है तो वे लोग कहते हैं लिखने से क्या होगा। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता यह बात सुनते ही मुझे बहुत जोर से गुस्सा आता है। आपको सारी बात बताकर मेरा मन हल्का हुआ है, आपने जब मेरी बात को पढ़कर सुनाया तो मेरा विश्वास बढ़ा है मेरे अन्दर का डर कुछ खत्म हुआ है।


फरहत शबा खानम के साथ बातचीत पर आधारित

डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

Monday, March 14, 2011

Friday, March 11, 2011

Child rights: Commitment Unfulfilled - The Times of India

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Voice of Dalit from Benaras

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